Wednesday, February 5, 2025
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महात्मा गांधीजी का चिंतन और विचार बहुआयामी: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। आज महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को श्रद्धासुमन अर्पित कर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महात्मा गांधीजी का चिंतन और विचार बहुआयामी है। हमें आज गांधीजी को श्रद्धाजंलि अर्पित करने के साथ ही उनके चिंतन को समझने की जरूरत है। गांधी जी अहिंसा और शांति के पूजारी थे, उन्होंने हमें अस्तेय, अपरिग्रह और सर्वोदय रूपी दिव्य सूत्र हमें प्रदान किये है।

महात्मा गांधी जी ने पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति और पारिस्थितिकीय तंत्र को संरक्षित करने के साथ ही जैविक, स्वदेशी और पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं का उपयोग करने तथा प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपभोग का संदेश दिया ताकि प्रकृति पर किसी भी प्रकार का बोझ न हो, यह संदेश प्रत्येक राष्ट्र और हर युग के लिये प्रासंगिक है।

आज गांधी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके विचार युगों-युगों तक हमारे बीच रहेंगे क्योंकि उनके विचार और चिंतन हर युग के लिये प्रासंगिक हैं। गांधी जी ने कहा था कि “उम्र से बूढ़ा होने पर भी मुझे नहीं लगता कि मेरा आंतरिक विकास रुक गया है या काया के विसर्जन के बाद रुक जाएगा।” आज भी गांधी जी अपने विचारों के माध्यम से संपूर्ण विश्व में गतिमान और जीवंत हैं तथा हर जन के मन में गांधी जी आज भी जिंदा हैं।

स्वामी जी ने कहा कि महात्मा गांधी जी सम्पूर्ण विश्व में शांति की स्थापना करना चाहते थे इसलिये उन्होंने पूरा जीवन अहिंसा का मार्ग अपनाया और शांति, सहिष्णुता व अहिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देने का अद्भुत कार्य किया। गांधी के जीवन और चिंतन का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है साध्य और साधन की पवित्रता, गांधी जी के लिये अहिंसा साधन है और सत्य साध्य है। उन्होंने सत्य की खोज करते हुये अहिंसा को प्राप्त किया, सत्य उनके लिये हमेशा प्रयोग का विषय था। उन्होंने कहा कि सत्य अपने-अपने अनुभव और विवेक की प्रयोगशाला में स्वयं को परखने की चीज है। गांधी जी ने ‘सर्वोदय’ अर्थात यूनिवर्सल उत्थान; सभी का उदय का संदेश दिया।

स्वामी जी ने कहा कि गांधी जी ‘ईशावास्यमिदं सर्वम’ अर्थात ‘प्रकृति के कण कण में ईश्वर है’ की अवधारणा में विश्वास करते है।  गाँधी जी प्रकृति और मनुष्य के सहसंबंध पर विश्वास करते थे। उन्होंने कहा था कि ‘प्रकृति मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकती है, किन्तु महत्वाकांक्षाओं की नहीं’ अर्थात गांधी जी प्राकृतिक संसाधनों के संतुलित उपयोग और उपभोग की बात कहते थे गांधी जी स्वच्छता की सेवा को पूजा की तरह पवित्र कार्य के रूप में देखते थे जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अभूतपूर्व कदम है इसलिये हमें ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर, ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर, नीड कल्चर से नये कल्चर, यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर की ओर बढ़ना होगा। हमें बी आर्गेनिक, बाय आर्गेनिक, बाय लोकल, बी वोकल फाॅर लोकल को अंगीकार करना होगा। हमें अर्गेनिक वस्तुओं पर तथा लोकल उत्पादों पर फोकस करना होगा साथ ही ग्रीन फार्मिग, आर्गेनिक फार्मिग, जैविक खेती, को अपनाना होगा यही गांधी को हमारी ओर से सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।

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