ऋषिकेश। समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले भारत की पहली आधुनिक नारीवादियों में से एक थी, आज उनकी जयंती पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भावाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि घरों के भीतर और बाहर महिलाओं के प्रति व्याप्त अवधारणाओं को बदलने के लिये सावित्री बाई फुले ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि समाज को लैंगिक पूर्वाग्रहों से मुक्त करने तथा लैंगिक समानता की स्थापना करने हेतु प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत के समग्र विकास के लिये लैंगिक समानता अत्यंत जरूरी है। हाल ही में माननीय ऊर्जावान प्रधानमंत्री भारत, श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने उद्बोधन में कहा था कि ‘‘जिस कालखंड में विश्व में जेंडर इक्विेलिटी जैसे शब्दों का जन्म भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियां शास्त्रार्थ करती थी। महर्षि वाल्मिकी जी के आश्रम में लवकुश के साथ ही आत्रेयी भी पढ़ रही थी।’’
लैंगिक समानता युक्त समाज की स्थापना के लिये बिना भेदभाव के बेटे और बेटियों के पालन-पोषण के साथ ही किताबें, डिजिटल गेम, राइम्स, के माध्यम से बचपन से व्यवहार परिवर्तन हेतु प्रयास करने होंगे। लैंगिक समानता की कहानियां यथा गार्गी और मैत्रेयी आदि विदुषियों की कहानियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए तथा बचपन में लैंगिक समानता शिक्षा की पहल करनी होगी। माताओं को चाहिये कि उनकी बेटियों को ऐसे अवसर प्रदान करने के लिये प्रयास करें जो उनके पास कभी नहीं थे इसके लिये प्रयास करने होगे, इस हेतु बेटियों और बेटों को समान रूप से शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है।
ज्ञात हो कि 19वीं सदी, भारत में धार्मिक- सांस्कृतिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण की सदी मानी जाती रही है। उस समय अनेक महापुरूषों ने समाज में आमूलचूल परिवर्तन कर भारतीय समाज में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने की कोशिश भी की। ऐसी ही महान समाज सुधारक थी सावित्रीबाई फुले। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त कराने और उनके समान शिक्षा व अवसरों के लिए पुरजोर कोशिश की। जब वह स्कूल जाती थीं तो लोग अक्सर उन पर गोबर और पत्थर फेंकते थे लेकिन फिर भी वह अपने कर्तव्य पथ से विमुख नहीं हुईं।
वर्ष 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना सावित्रीबाई फुले ने ही की थी। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। सावित्रीबाई इन स्कूलों में केवल पढ़ाने का ही काम नहीं करती थी, बल्कि लड़कियों को स्कूल ना छोड़ना पड़े वह इसके लिए भी लगातार कोशिश किया करती थी। उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्राचार्या बनी थीं। उन्होंने सदैव शिक्षा और महिला साक्षरता के लिये काम किया।
उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता और सामाजिक न्याय के लिये जीवन पर्यन्त कार्य किया तथा दोनों ने सत्यशोधक समाज (सत्य की तलाश के लिये समाज) की शुरुआत की जिसके माध्यम से वे सत्यशोधक विवाह प्रथा शुरू करना चाहते थे जिसमें कोई दहेज नहीं लिया जाता था। वर्तमान समय मंे लैंगिक समानता युक्त समाज की स्थापना हेतु प्रयत्न करना ही सावित्री बाई फुले को सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।