Sunday, July 20, 2025
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अगर हमें स्वच्छ वायु चाहिये तो पौधों का रोपण व संरक्षण करना होगा : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आयोजित 34 दिवसीय श्री राम कथा का 32 वां दिन पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित किया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने वैश्विक पवन दिवस के अवसर पर कहा कि पवन अर्थात वायु! वायु है तो आयु है, आयु है तो जीवन है परन्तु अगर हमें स्वच्छ वायु चाहिये तो पौधों का रोपण व संरक्षण करना होगा। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अद्भुत पहल ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’ का उल्लेख करते हुये कहा कि हम सभी संकल्प लें कि एक पेड़ मां के नाम और दूसरा पेड़ धरती मां के नाम तब हमें स्वच्छ व शुद्ध वायु मिल पायेगी।
इस अवसर पर स्वामी जी ने कथा श्रवण कर रहे भक्तों को पवन पुत्र हनुमान जी की भक्ति और भक्ति की शक्ति की महिमा बताते हुये हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करने का संकल्प कराया।
स्वामी जी ने विश्व पवन दिवस के आर्थिक व पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर भी चर्चा करते हुये कहा कि पवन ऊर्जा, ऊर्जा का सबसे स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोत है। जो विद्युत उत्पन्न करने के साथ ग्रीनहाउस गैसों या अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करती है। पवन ऊर्जा का उपयोग घरों, व्यवसायों, खेतों और अन्य अनुप्रयोगों के लिये किया जा सकता है। पवन ऊर्जा को प्राप्त करने के लिये हमें अधिक से अधिक पौधों का रोपण करना होगा।
स्वामी जी ने आज विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस के अवसर पर बुजुर्गों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और उपेक्षा पर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुये कहा कि भारत में 47 प्रतिशत बुजुर्ग आर्थिक रूप से अपने परिवारों पर निर्भर हैं और 67 प्रतिशत बुजुर्ग उनके जीवन के इस महत्त्वपूर्ण चरण में उनके पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है अर्थात वे पूरी तरह से परिवार पर निर्भर है। 59 प्रतिशत बुजुर्गों ने महसूस किया कि समाज में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार ‘प्रचलित’ है लेकिन केवल 10 प्रतिशत ने स्वीकार किया कि वे पीड़ित हैं अर्थात् वे पीड़ित होने के बाद भी उस पर बात नहीं करना चाहते ये है उनका अपने बच्चों के प्रति प्रेम। युवा पी़ढ़ी को यह ध्यान रखना होगा कि बुजुर्गों कि वजह ही आज वे हैं और उन्ही से उनकी वास्तविक पहचान भी है इसलिये उनका सम्मान, आदर करने के साथ उन्हें संरक्षण प्रदान करे।
बुजुर्ग घर की शान है, उन्ही से ही संस्कारों की गंगा घरों में प्रवाहित होती हैं। बुजुर्गों ने ही अपने मूल व मूल्यों को सम्भाल कर रखा है। उन्हें उनके जरूरत का सामान देने के साथ थोड़ा सा सम्मान व अपने समय में से प्रतिदिन थोड़ा सा समय उनके साथ बिताये ताकि उनका यह समय अपने परिवारवालों के साथ प्रसन्नता के साथ व्यतित हो सके।

 

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