भारत की संस्कृति संकीर्णता की नहीं बल्कि विशालता की: स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में सभी विभिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सम्वेट ऑडिटोरियम, जनपथ, आईजीएनसीए, दिल्ली में आयोजित ‘ग्लोबल माइनारिटी रिपोर्ट’, का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर पूर्व उपराष्ट्रपति माननीय वैंकेया नायडू जी ने अनुच्छेद 29 अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने के अधिकारों के साथ अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त अधिकार तथा अनुच्छेद 30 धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन का अधिकार होगा आदि अनेक विषयों पर चर्चा की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मानवाधिकारों पर चर्चा करते हुये कहा कि किसी भी व्यक्ति को जन्म के साथ मिलने वाले अधिकार जैसे जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार शामिल है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिग और क्लाइमेंट चेंज के कारण शुद्ध वायु और स्वच्छ जल का अधिकार हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत विविधताओं से युक्त राष्ट्र है तथा विविधताओं में एकता ही भारत की संस्कृति की स्वर्णिम गरिमा का आधार है। भारत में सांस्कृतिक विविधता-सांस्कृतिक विषमता होने के बाद भी हमारे आयोजनों में विभिन्न संस्कृतियों का स्वर्णिम संयोजन स्पष्ट दिखायी देता है। विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों के व्यक्तियों के मध्य सद्भाव दिखायी पड़ता है। भारत की संस्कृति संकीर्णता नहीं बल्कि विशालता है। जैसे हिमालय विशाल है उसी तरह हमारी संस्कृति भी विशालतम है।
स्वामी जी ने कहा कि धर्म और संप्रदाय के नाम पर व्यक्तिगत हितों के लिये नहीं बल्कि संपूर्ण समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के उत्थान और संरक्षण के लिये मिलकर कार्य करना होगा। हमें सद्भाव, समरसता, सहिष्णुता और सामाजिकता को बढ़ाने वाले संदेश प्रसारित करना होगें। उन्होंने कहा कि भारत में व्याप्त सांप्रदायिकता की जड़ों में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता नहीं बल्कि भगवान बुद्ध, पैगम्बर साहब और महात्मा गांधी जी की शान्ति और अहिंसा की अवधारणा समाहित है।
स्वामी जी ने कहा कि धर्म हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है परन्तु हिंसा हमारी संस्कृति का अंग नहीं है। देश भर में प्रचलित विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के प्रति सहिष्णु धार्मिक नीति का पालन किया जाना चाहिये क्योंकि नफरत से किसी को नफा नहीं होता।
स्वामी जी ने कहा कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक है और उसकी विशालता को बनाये रखना हम सभी का परम कर्तव्य है। अंधानुकरण और जोर जबरदस्ती से धर्मपरिवर्तन, बिना सोचे-समझे सांप्रदायिकता के नाम पर हिंसा भारत की गरिमा और गौरवमयी इतिहास पर एक दाग के समान है इसलिये हम सभी को शांति, अहिंसा, करुणा, धर्मनिरपेक्षता और मानवतावाद के मूल्यों के साथ जीवन जीना सिखाना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी विशिष्ट अतिथियों रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।