देहरादून। गढ़वाल रेजीमेंट के वीर सिपाही चंद्र सिंह गढ़वाली जी जो कि पेशावर कांड के नायक थे आज उन्हीं को रेजीमेंट द्वारा उन्हें भुला दिया गया है, 23 अप्रैल १९३० को पेशावर पेशावर में स्वतंत्रता के लिए आंदोलनरत लोगों पर गोली चलाने के आदेश की अवहेलना करके वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी ने अंग्रेज सैन्य अफसर को अपनी देश प्रेम व स्वाधीनता की भावना से अवगत कराया था। आदेश न मानने के आरोप में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी को गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल की कार्रवाई से उन्हें नौकरी से बर्खास्त करके काला पानी की सजा काटने के लिए अंडमान भेज दिया गया था। सजा मुक्त होने के बाद वीर चंद्र सिंह गढ़वाली संपूर्ण जीवन स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़े बाद में गढ़वाल क्षेत्र में सामाजिक गतिविधियों में जीवन भर संलग्न रहे। परंतु दुख का विषय है कि उन्हें की गढ़वाल राइफल रेजीमेंट के लेंस डाउन स्थित संग्रहालय में उनके संदर्भ में कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है तथा ना ही उनकी कोई मूर्ति फोटो या कागजी दस्तावेज गढ़वाल राइफल के कार्यालय केंद्र में उपलब्ध है। संभवत गढ़वाल रेजीमेंट के ब्रिटिश सेना के तत्कालीन संबंधों के कारण उन्हें भुला दिया गया होगा, क्योंकि गढ़वाल राइफल रेजीमेंट को एक ब्रिटिश सेना अधिकारी द्वारा गठित किया गया था। आज जबकि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की स्मृति में राज्य सरकार अनेकों कल्याणकारी योजनाएं जनहित में संचालित कर रही हैं तथा उत्तराखंडी नौजवानों को श्री चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से जोड़कर उन्हें वीर चंद्र सिंह गढ़वाली रोजगार योजना के अंतर्गत लाभान्वित कर रही है। हाल ही में शिक्षा मंत्री उत्तराखंड द्वारा वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के जन्म स्थान पाटी सेंण पौड़ी गढ़वाल में एक सैनिक स्कूल की स्थापना की घोषणा की गई है जो कि निश्चित रूप से सराहनीय है तथा प्रदेश को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के साथ जोड़ना चाहती है। परंतु खेद व दुख का विषय यह है कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की स्वयं की गढ़वाल रेजीमेंट द्वारा उन्हें भुलाया जाना उनके शौर्य साहस तथा देश प्रेम की भावना के साथ सरेआम अन्याय होगा।
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