ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि भारत विविधता से परिपूर्ण राष्ट्र है इसलिये “विविधता में एकता” भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति हमें सामाजिक, धार्मिक, वैचारिक और सांस्कृतिक आदि अनेक स्तरों पर स्पष्ट दिखायी देती है। हमेशा से ही भारतीय संस्कृति ने अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखते हुये विविधता में एकता की संस्कृति को अंगीकार किया है तथा भारतीयों को भी वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान की है।
परन्तु संकीर्णवाद की संस्कृति राष्ट्र के विकास और एकता के लिये एक खतरा है और इससे आंतरिक सुरक्षा भी प्रभावित होती है इसलिये हमें यह याद रखना होगा कि ‘हम सबसे पहले भारतीय हैं’ उसके बाद हमारी व्यक्तिगत पहचान हैं। जहां बात राष्ट्र की एकता की है वहां पर हमें अपने व्यक्तिगत हितों को नजरअंदाज करते हुए देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता का सम्मान करना चाहिये और यह नियम सभी पर लागू होता है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत ने महान लोकतान्त्रिक राष्ट्र के रूप में अनेक उपलब्धियों को हासिल किया है परन्तु अब इन उच्च आदर्शों को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में भी धारण करना होगा। भारत की एकता ही भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ है और भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से ही ‘विविधता में एकता’ कि अपनी विशिष्टताओं के साथ विकसित होती रही है। हमें एक दूसरे की संस्कृति और आस्था का सम्मान करते हुये भारतीय एकता के सूत्रों की जड़ों को और भी सुदृढ़ करना होगा यही हम सभी का परम कर्तव्य है।
स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया है कि सभी सामाजिक और धार्मिक संगठन मिलकर एकता की संस्कृति को भारत के सभी कोनों तक पल्लवित और पुष्पित करने हेतु योगदान प्रदान करें ताकि हमारे राष्ट्र में एकता की अजस्र धारा सभी दिशाओं में प्रवाहित होती रहे ताकि प्रत्येक जन और प्रत्येक मन को एकता के सूत्र में पिरो कर रखा जा सके। हमारे ऋषियों ने भारतीय एकता के सूत्र को सुदृढ़ बनाये रखने हेतु अनेक सूत्र दिये हैं तथा हम तो वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति को मानने और जीने में विश्वास करते है।
भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पक्ष भारत की धार्मिक एकता है । भारत में सभी धर्मों और सम्प्रदायों में बाह्य विभिन्नता भले ही हो, परन्तु उन सभी के मूल में मोक्ष, निर्वाण अथवा कैवल्य की प्राप्ति ही प्रमुख गन्तव्य है। भारत की धार्मिक एकता एवं धर्म की विशद कल्पना ने हमेशा से ही देश को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया है जिसमें भारत की जनता को जोड़ने और जुड़ने की असीम शक्ति है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे महापुरूष महात्मा गांधी, बुद्ध, नानक, तुलसी, महावीर सभी ने एकता, समता, समरसता का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि धर्म अर्थात ‘मजहब’ या ‘रिलीजन’ ही नहीं है बल्कि धर्म का व्यापक अर्थ है सत्य की खोज और सहिष्णुतापूर्ण उदार व्यक्तित्व है। सभी धर्म अपने वास्तविक मूल में एकांकी नहीं बल्कि सर्वांगीण विकास की बात करते हैं। धर्म, रिक्तता व संकीर्णता की नहीं परिपक्वता, समुन्नत विकास और सम्पूर्णता की बात करते है। भारतीय संस्कृति ने अपनी इन्हीं विशेषताओं को जीवंत और जाग्रत बनाये हुये अपने देश को एक सशक्त एवं सम्पूर्ण भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध रखा है, इस एकता को बनाये रखना हर भारतीय का प्रथम कर्तव्य है।