देहरादून। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए सदैव नए प्रयोगों के लिए तैयार रहना होगा। हर स्कूल अपने सफल प्रयोगों को दूसरे स्कूलों के साथ भी साझा करें। इससे सामुहिक रूप से शैक्षिक सुधार को गति मिल सकेगी। विद्यालय नेतृत्व विकास एवं प्रबंधन पर उत्तर भारतीय छह राज्यों के राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन एक स्वर में यह राय उभर कर आई। ननूरखेड़ा स्थित एससीईआरटी ऑडिटोरियम में राज्य के विभिन्न स्कूलों से आए शिक्षकों ने अपने अपने नए प्रयोगों पर विस्तार से प्रस्तुतिकरण दिया। इस मौके पर निदेशक-एआरटी वंदना गर्ब्याल ने कहा कि शिक्षा सहज,सरल और प्रभावी रूप में होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि नए विचारों पर काम किया जाए। विचार ऐसे होने चाहिएं जो छात्रों के लिए सहज ग्राह्य हों। शिक्षक अपने प्रयोगों को परस्पर साझा भी करें। अपर निदेशक-सीमेट अजय नौडियाल ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष फोकस होना चाहिए।
अपर निदेशक-एससीईआरटी ने अपने शिक्षणकाल के अनुभवो को साझा किया। कहा कि सरकारी स्कूलों की कमी यह भी कि वो अपने अनुभवों को परस्पर साझा नहीं करते। यह गलत है। शिक्षकों को शेयरिंग की भावना को विकसित करना होगा। इससे अपनी कमियां और अच्छाइयां भी पता चलती हैं।
चमोली के आदर्श उच्च प्राथमिक स्कूल-हरमनी के शिक्षक मदनलाल कपरवाल, टिहरी के प्राथमिक स्कूल चामी के उमादत्त नौटियाल, दून के डोभालवाला जीआईसी के सुरेंद्र सिंह बिष्ट और कविता बहुगुणा ने प्रार्थना सभा, प्रात:कालीन गतिविधियों में किए गए नए प्रयोग और रिंगाल व स्याही पारंपरिक विधा के विकास के लिए किए प्रयोग को साझा किया।
सेमिनार में बेसिक शिक्षा निदेशक रामकृष्ण उनियाल, संस्कृत शिक्षा निदेशक डॉ. आनंद भारद्वाज, सीमेट के विभागाध्यक्ष दिनेश चंद्र गौड़,डॉ. मोहन बिष्ट, विनोद ध्यानी, केएन बिजल्वाण, रघुवीर बिष्ट, आदि मौजूद रहे। डॉ. मोहन बिष्ट ने बताया कि कल सेमिनार का समापन होगा।
शिक्षा सहज,सरल और प्रभावी रूप में होनी चाहिए: गर्ब्याल
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