देहरादून। उत्तराखंड का राज्य पर्व हरेला मंगलवार 16 जुलाई को शुरू होगा। हरेला लोकपर्व सावन के आने का संदेश है, जिसके पीछे फसल लहलहाने की कामना, बीजों का संरक्षण और बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद है। एक जमाने में उत्तराखंड के गांवों से देश-विदेश में बसे लोगों को चिट्ठियों के जरिए हरेला के तिनकों को आशीष के तौर पर भेजा जाता था। गाजे-बाजे के साथ इस दिन पूरे पहाड़ में नई पौध भी लगाई जाती है। इस साल भी अनेकों संस्थाओं ने हरेला पर पौधरोपण के व्यापक कार्यक्रम तय किए हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ.सुशांतराज के अनुसार, मूल रुप से उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाए जाने वाले हरेला को गढ़वाल में भी खूब मनाया जाता है। इस दिन कान के पीछे हरेले के तिनके रखे लोग नजर आते हैं। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड कृषि पर निर्भर रहा है और यह लोकपर्व इसी पर आधारित है। बीजों के संरक्षण, खुशहाल पर्यावरण का भाव और भक्ति से जोड़ते हुए इस पर्व को पूर्वजों ने आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया। हरेला पर्व के समय शिव और पार्वती की पूजा का विधान है।